घर-घर गीता का प्रचार हो
Updated At: Sept. 30, 2024, 3:20 p.m.

संकल्पगीत - घर-घर गीता का प्रचार हो

घर - घर गीता का प्रचार हो, सदाचार और सद्विचार हो।

पहले सा मेरा भारत ये, जगद्गुरु फिर एक बार हो।।

 

वेदों का उद्घोष मधुर हो, उपनिषदों का पाठ प्रचुर हो,

गीता, रामायण, भारत की, वाणी ही चहुँ ओर मुखर हो,

कृष्णम् वन्दे जगद्गुरुम् का, आवर्तन फिर एक बार हो।।1।।

 

स्वाध्याय को हम अपनायें, दीन-दुःखी को गले लगायें,

जन-मन का सब क्लेश मिटायें, घर-घर में समृद्धि लायें,

शान्ति साधना के उपवन में, गीताजी का पाठ मधुर हो।।2।।

 

सौध-सौध और सदन-सदन में, नर-नारी के वदन-वदन में,

कुटी-कुटी के बाल-बालिका, मठ-मन्दिर, विद्यालय, वन में,

आज भोज विक्रम के युग का, अनुवर्तन फिर एक बार हो।।3।।

 

कौन करेगा पूरा प्रण ये, कौन कहे घर-घर जन-जन से ?

ज्ञानग्रन्थ गीता के गायक, पूर्ण करें हम ही इस प्रण को,

इक्कीसवीं सदी में अब ये, परिवर्तन फिर एक बार हो।।4।।

-आचार्यः

 रमेशकुमारपाण्डेयः

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