सृष्टि संवत्सर के प्रथम दिवस वर्ष प्रतिपदा गुड़ी पड़वा जो हिन्दू नववर्ष/सनातन नववर्ष/भारतीय नया साल / वैज्ञानिक नववर्ष/ प्राकृतिक नववर्ष आदि नामों से जाना जाता है के पावन अवसर पर विश्वगीताप्रतिष्ठानम् नव संवत्सर अभिनंदन समारोह मनाता है। इस दिन भगवान् भुवन भास्कर( सुर्यदेव) की सामूहिक आराधना से लोक-मंगल के हेतु आयोजन करते है। इसके लिए विश्वगीताप्रतिष्ठानम् के कार्यकर्तागण सहित अनेक धर्मप्रेमीजन श्वेत/पीले रंग के गरिमामय परिधान में कलश( जलपात्र) और संध्यावंदन हेतु अपने आसन आदि लेकर नव संवत्सर अभिनंदन समारोह हेतु पहले से निर्धारित प्रसिद्ध एवं उच्च स्थान पर ब्रह्म मुहूर्त के दिव्य वातावरण में एकत्रित होते । सूर्य को अर्घ्य अर्पण करने से पूर्व आवश्यक संध्यावंदन जिसमें प्राणायाम विनियोग आदि संक्षिप्त रूप से कर संक्षिप्त गीतास्वाध्याय करते हुए संक्षिप्त संदेश कुल गीत, वैदिकराष्ट्रगान उपरांत निर्धारित समय पर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पण करते है ।आरती और कल्याण मन्त्र के साध आयोजन पूर्ण होता है। नीम कालीमिर्च आदि से निर्मित प्रसाद वितरित किया जाता है। प्रत्येक वर्ष के अलग यजमान होते है। यजमान के रूप में कोई अन्य संस्थान/ शैक्षिक/ सामाजिक आदि हो सकता है जिसे गीता ध्वज की अगवानी करना होती है।

प्रथम उत्सव

कब मनाया जाता है ?

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है ।

क्यों मनाया जाता है ?

वैदिक मान्यता के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि का उदय हुआ था। इसलिए प्रत्येक वर्ष की चैत्र मास की प्रतिपदा को नव संवत्सर अभिनन्दन महोत्सव मनाया जाता है। कलियुगाब्द और विक्रमसंवत्‌ का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना जाता है। इसे सृष्टि सम्वत का आरम्भ दिन मानते हैं।

कहां मनाया जाता है ?

नगर या ग्राम के उन्नत स्थल पर पर्वत, मंदिर, सरोवर या उद्यान में जहां पर्याप्त स्वच्छता और जल की व्यवस्था हो वहां नव संवत्सर महोत्सव का आयोजन किया जाता है ।

कैसे मनाया जाता है ?

प्रातः काल सूर्योदय के समय ब्रह्माण्ड के नायक और जगत्पिता भगवान सूर्य की आराधना के साथ नव संवत्सर समारोह का शुभारम्भ होता है। उपयुक्त स्थान पर सूर्योदय से पूर्व एकत्रित होकर उत्साह और प्रसन्नता के साथ शास्त्रोक्तविधि से शंखध्वनि, मंगल कलश स्थापना, स्वस्तिवाचन तथा संकल्प मन्त्र में देश काल का उल्लेख कर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है तत्पश्चात् दोनों हाथ ऊपर कर सूर्योपस्थान करके सूर्य के 12 नामों से सूर्य नमस्कार किये जाते हैं। नये पंचांग का पूजन कर भारतीय काल गणना के स्वरूप पर व्याख्यान होता है तथा परस्पर नव संवत्सर की शुभकामनाएं दी जाती हैं। इस अवसर पर गीता स्वाध्याय तथा भजन गायन से वातावरण और भी आनन्द एवं उत्साह से भर जाता है।