अपने घर पर गीता स्वाध्याय कराकर, गीताप्रेस से प्रकाशित श्रीमद्भगवद्गीता की पुस्तकों का दान करके, गीता प्रचार हेतु अपना समय दान करके, गीता स्वाध्याय हेतु समाज के विभिन्न वर्गों से सम्पर्क करके, गीता स्वाध्याय शृंखला को सुचारु रूप से संचालन करने हेतु मंदिर, समाज, संस्था, गुरुकुल, गणमान्य जन, गीता अनुरागी जन, बस्ती तथा समीपस्थ ग्राम में गीता चौपाल और गीता स्वाध्याय का आयोजन कराकर, निजी एवं सरकारी शिक्षण संस्थाओं में नियमानुसार गीता श्लोक पाठ, गीता निबन्ध, गीता सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता, गीता परिचर्चा, गीता संगोष्ठी और सम्मेलन कराकर, विश्वगीताप्रतिष्ठानम् की शाखाओं में व्यवस्था आदि के विभिन्न प्रकार के दायित्वों से जुड़कर, उपर्युक्त कार्यों में प्रकाशन, प्रचार - प्रसार और व्यवस्थाओं में सामर्थ्य के अनुसार वस्तुओं का सहयोग करके तथा अक्षय निधि खाते में धन दान आदि करके सहभागिता की जा सकती है।
कब मनाया जाता है ?
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है ?
विद्या, ज्ञान तथा वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को सरस्वती जयन्ती गीता वसन्तोत्सव मनाया जाता है। शीत के प्रकोप से पीड़ित प्राणियों के जीवन को आनन्दित और प्रफुल्लित करने हेतु प्रकृति अपना सुन्दर रूप प्रस्तुत करती है। वाणी के रूप में गीता का साक्षात् अवतरण भगवान के श्रीमुख से हुआ है। सरस्वती की कृपा के बिना वाणी सिद्ध नहीं होती है। इसलिए विश्वगीताप्रतिष्ठानम् गीता भारती की आराधना के रूप में सरस्वती जयन्ती का आयोजन करता है।