सआद्य शंकराचार्य जयन्ती

आदि शंकराचार्य एक महान भारतीय गुरु तथा दार्शनिक थे जिन्होंने नए ढंग से हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार किया और लोगों को सनातन धर्म का सही अर्थ समझाया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ही आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था नका जन्म 788 ईस्वी में वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हुआ था। आदि शंकराचार्य ने 8 साल की उम्र में सभी वेदों का ज्ञान हासिल कर लिया था। इनका जन्म दक्षिण भारत के नम्बूदरी ब्राह्मण वंश में हुआ था। आज इसी वंश के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल होते हैं। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं। माना जाता है कि 820 ईस्वी में सिर्फ 32 साल की उम्र में शंकराचार्य जी ने हिमालय क्षेत्र में समाधि ली थी। हालांकि शंकराचार्य जी के जन्म और समाधि लेने के साल को लेकर कई तरह के मतभेद भी हैं। आदि शंकराचार्य 8 साल की उम्र में सभी वेदों के जानकार हो गए थे। उन्होंने भारत की यात्रा की और चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी। जो कि आज के चार धाम है। शंकराचार्य जी ने गोवर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), श्रंगेरी पीठ (रामेश्वरम्), शारदा मठ (द्वारिका) और ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ धाम) की स्थापना की थी।

तृतीय उत्सव

कब मनाया जाता है ?

प्रतिवर्ष वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन जगद्गुरु आद्यशंकराचार्य की जयन्ती मनाई जाती है।

क्यों मनाया जाता है ?

आदिगुरु शंकराचार्य का आज के ही दिन इस धराधाम पर अवतरण हुआ था । जब वैदिक धर्म को नष्ट करनेके लिये चतुर्दिक्‌ प्रहार हो रहे थे ऐसे समय में शंकराचार्य जी ने सम्पूर्ण भारतवर्ष घूम-घूम कर विद्वानों से शास्त्रार्थ कर फिर से वैदिक धर्म की स्थापना की । पर सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय का अध्ययन कर ब्रह्मसूत्र एवम्‌ श्रीमद्भगवद्गीता पर सटीक और प्रामाणिक भाष्य लिख कर गीता जी को प्रस्थानत्रयी ग्रन्थ के रूप में प्रस्थापित करने का भागीरथ प्रयत्न किया । भाष्यकारों में सबसे प्रामाणिक भाष्यकार तथा सम्पूर्ण विश्व में सत्य सनातन धर्म की ध्वजा फहराने वाले दिग्विजयी शंकराचार्य जी ही हैं । शंकराचार्य जी ने गीता प्रचार प्रसार के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया। अतः आचार्य परम्परा को पुनर्स्थापित करने के लिए विश्वगीताप्रतिष्ठानम् आद्य शंकराचार्य जी का जयन्तीदिवस मनाता है।

कैसे मनाया जाता है ?

इस अवसर पर आदिगुरु शंकराचार्य जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से जन सामान्य को परिचित कराया जाता है । सामाजिक समरसता को बढाने वाले गीता प्रचारक आचार्यों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व से भी सामान्य जन को परिचित कराने की दृष्टि से श्री रामानुजाचार्य, श्री निम्बार्काचार्य श्री मध्वाचार्य, श्री वल्लभाचार्य, श्री रामानन्दाचार्य, संत ज्ञानेश्वर तथा अन्य आचार्यों का एक साथ पुण्य स्मरण कराने के लिए आचार्य महोत्सव के रूप में इसका आचरण किया जाता है। अतः इस दिन इन आचार्य के कृतित्व और जीवन परिचय पर आधारित विशेष विद्वानों के व्याख्यान कराये जाते हैं।